चुनावी मौसम शुरू हो गया है और लगभग सभी राजनैतिक दलों के अंदर मंथन जारी है. कहीं पर सहयोगी दल "ब्लैकमेल" करने में लगे है और कहीं दल बदलने का खेल जोर शोर से चल रहा है. पार्टी के साथ-साथ परिवार में भी अगर मंथन की बात करें तो सबसे ज्यादा असमंजस की स्थिति कांग्रेस की है और यह स्थिति किसी और को लेकर नहीं बल्कि प्रियंका गाँधी को लेकर है. आज मै आपको बताता हूँ की आखिर यह असमंजस की थिति क्यों है.
चुनावी समय में याद
कांग्रेस को प्रियंका गाँधी की याद सिर्फ चुनाव के समय आती है. जैसे ही चुनाव का समय पास आता है वैसे ही प्रियंका गाँधी को कुछ जगह प्रचार करने का जिम्मा सौंप दिया जाता है. पहले यह जिम्मेदारी सिर्फ अमेठी और रायबरेली तक सीमित रहती थी और इस बार 2019 के चुनाव के लिए आधे उत्तर प्रदेश में प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी गयी है. अमेठी और रायबरेली की जिम्मेदारी भी सिर्फ इसलिए दी जाती थी क्योंकि यह दोनों संसदीय क्षेत्र राहुल गांधी और सोनिया गाँधी के है जहाँ कांग्रेस कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है.
प्रियंका गाँधी को सक्रीय राजनीति में जगह नहीं देने का सबसे बड़ा कारण
आज तक कांग्रेस द्वारा या यह कहें की गाँधी परिवार द्वारा (क्योंकि कांग्रेस का मतलब सिर्फ गाँधी परिवार ही है) प्रियंका गाँधी को सक्रीय राजनीति में नहीं लाया गया. इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण है और वो कारण है राहुल गाँधी का भविष्य. पूरा गाँधी परिवार और कांग्रेस पार्टी अच्छे से जानती है की एक लीडर, नेता, प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में राहुल गाँधी की स्वीकार्यता बिलकुल भी नहीं है. यहाँ तक की एक तेज़ तर्रार नेता के रूप में भी राहुल गाँधी को कोई नहीं देखता जबकि प्रियंका गाँधी चेहरे मोहरे से तो स्व इंदिरा गाँधी की तस्वीर लगती ही है साथ ही IQ लेवल में भी प्रियंका गाँधी कहीं आगे है. पूरे गाँधी परिवार को पता है की जिस दिन प्रियंका गाँधी सक्रीय राजनीति में आ जाएँगी उस दिन राहुल गाँधी का राजनैतिक कैरियर ख़त्म हो जायेगा. इसीलिए प्रियंका को पार्टी में सक्रीय राजनीति नहीं करने दी जाती.
कांग्रेस और गाँधी परिवार की सबसे बड़ी असमंजस
गाँधी परिवार और कांग्रेस पार्टी में सबसे बड़ी असमंजस की स्थिति यह है की अगर प्रियंका को सक्रीय राजनीति में नहीं लाते है तो राहुल गाँधी के भरोसे पार्टी का भला होने वाला नहीं है और अगर प्रियंका को ले आते है तो उसी दिन से राहुल गाँधी का कैरियर ख़त्म हो जायेगा. एक तरह से एक तरफ कुंआ एक तरफ खाई वाली स्थिति है.
प्रियंका को आधा उत्तर प्रदेश देने का कारण
अमेठी और रायबरेली से निकल कर प्रियंका गाँधी को आधे उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी देने के पीछे भी गाँधी परिवार की मज़बूरी है. असल में 2019 का चुनाव एक तरफ से राहुल गाँधी के भविष्य को तय करेगा. इस देश में 2019 का चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम गठबंधन होने वाला है. ऐसे में अगर कांग्रेस सत्ता में नहीं आ पाती है तो राहुल गाँधी के नेतृत्व और भविष्य पर सवालिया निशान लगना तय है. इसलिए मजबूरी में ही सही गाँधी परिवार और कांग्रेस देश के सबसे बड़े राज्य में अपना दांव प्रियंका गाँधी के रूप में खेलना चाहते है.
प्रियंका गाँधी की मज़बूरी
भाई से ज्यादा, प्रियंका गाँधी के लिए कांग्रेस का देश की राजनीति में बने रहना जरुरी है, इसलिए प्रचार भी मज़बूरी है. क्योंकि अगर पार्टी ही अस्तित्व में नहीं रहेगी तो सब खत्म हो जायेगा वैसे भी कहा जाता है की व्यक्ति बड़ा नहीं होता बल्कि संस्थान बड़ा होता है. इसमें कोई दो राय नहीं की प्रियंका गाँधी के अंदर आज भी कुछ लोग स्व इंदिरा गाँधी की छवि देखते है और उसका सबसे बड़ा बड़ा कारण है उनका चेहरा मोहरा. लेकिन उनके साथ कुछ कमियां भी है. सबसे बड़ी कमी कमी है की प्रियंका गाँधी सक्रीय राजनीति में नहीं है और उनको उसका अनुभव भी नहीं है. आज की जनता को सक्रीय रूप से कार्य करने वाला नेता ही ज्यादातर पसंद आता है.
अब देखना यह है की पार्टी हित में प्रियंका गाँधी को कांग्रेस की कमान सौंपी जाती है या फिर हमेशा की तरह राहुल गाँधी के कैरियर को बनाने के लिए प्रियंका गाँधी को हाशिये पर रखा जाता है.
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