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Friday, February 15, 2019

........जवाब देगा हिन्दुस्तान

                                      Aged, Ancient, Antique, Army, Art, Asia

....निशब्द हूँ, बहुत कुछ कहना चाहता हूँ लेकिन शब्द साथ नहीं दे रहे. पुलवामा में हमारे कई जवान शहीद हो गए. आतंकवादियों ने कायरतापूर्ण ढंग से सेना के काफिले पर हमला किया क्योंकि उनको पता था की सामने से मोर्चा लेते तो एक भी आतंकवादी ज़िंदा वापस नहीं जाता और हमारा एक भी जवान शहीद नहीं होता. एक सच्चा हिन्दुस्तानी होने के नाते मन में कुछ बातें आयी है. हम सब कुछ न कुछ करके इस कठिन घडी में देश के साथ खड़े हो सकते है. मैं कलम के माध्यम से अपने उदगार व्यक्त कर रहा हूँ अगर सही लगे तो अमल जरूर करियेगा. 


मीडिया करे ब्लैकआउट 
मेरा मानना है की इतने जवान शहीद हुए है की हमले के विरोध में और जवानो की शहादत के लिए एक अभूतपूर्व प्रदर्शन होना चाहिए. अगर मीडिया को सही लगे तो उनको ब्लैकआउट कर देना चाहिए. इसमें सभी अखबार एक दिन के लिए सिर्फ कोरा अखबार निकाले बिना किसी खबर या विज्ञापन के और सभी चैनल एक घंटे के लिए बंद कर देने चाहिए. 



विपक्ष करे सरकार से "गठबंधन"  
चुनाव को देखते हुए कई सारे दल सरकार के खिलाफ आपस में गठबंधन कर रहे है लेकिन ऐसे समय में उनको खुद सरकार से गठबंधन करके एक मंच पर आना चाहिए. इस हमले के बाद भी कई विपक्षी नेता सरकार की आलोचना कर रहे है. क्या उनको यह नहीं समझ आ रहा है की यह समय आलोचना करने का नहीं बल्कि भारत सरकार के साथ खड़े होने का है. आ जाइये एक मंच पर और बता दीजिये पकिस्तान, आतंकवादियों और पूरी दुनिया को, की हमारे वैचारिक मतभेद हो सकते है लेकिन हम सब सबसे पहले एक हिन्दुस्तानी है. 

अवार्ड वापसी गैंग और जिनको "डर" लगता है 
आजकल हमारे देश में ऐसे बहुत लोग पैदा हो गए है जो आये दिन कहते है की उनको इस देश में "डर" लगता है. उनसे मेरा निवेदन है की आइये बाहर निकल कर और देश के साथ खड़े हो जाइये. जितना डर आपको उस समय लग रहा था उससे ज्यादा हिम्मत दिखाए जवानो के साथ खड़े होने की और सीखिए उनसे की कैसे जान गवाँ कर भी अपने देश को सुरक्षित किया जाता है. कुछ लोग समय समय पर अवार्ड वापसी भी करने लगते है उनसे भी कहना चाहूंगा की जाइये और शहीदों की चिताओं पर अपने अवार्ड की आहुति दे दीजिये. 

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अंत में सरकार और प्रधानमंत्री जी से 
आप हमारे प्रधानमंत्री है और आपके ऊपर हमें पूरा भरोसा है. पकिस्तान को और इन आतंकवादियों को ऐसा जवाब दीजियेगा की आज तक देश के इतिहास में कभी किसी ने ऐसा जवाब ना दिया हो. ऐसा जवान जिसको आतंकवादियों की सात पुश्तें याद रखे. ऐसा जवाब जिसके बारे में अगर सपना भी आ जाये तो आतंक के ठेकेदारों का खून सूख जाए. पूरा देश आपके साथ है बस आपके जवाब का इन्तिज़ार है....आजतक का सबसे भीषण जवाब..... 

जय हिन्द 


Tuesday, July 31, 2018

समय की मांग, “पॉजिटिव जर्नलिज्म”




भारतीय संविधान के तीन स्तम्भ बताये गए है- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका लेकिन समय के साथ हमने इसमें एक स्तम्भ और जोड़ दिया, जो था तो नहीं लेकिन हमने उसको मान लिया जिसका नाम हुआ- मीडिया| अगर सच कहूँ तो इस बात का सबसे ज्यादा फायदा अगर किसी ने उठाया है तो वो खुद मीडिया है और शायद इसीलिए मीडिया निरंकुश होती चली गयी| लोकतंत्र के लिए जितनी जरुरी स्वतंत्र मीडिया और न्यायपालिका है उतना ही जरुरी किसी की भी निरंकुशता को खत्म करना भी है|

यही कारण है की आज लोगों का विश्वास मीडिया से उठता चला जा रहा है| मीडिया इतनी ज्यादा नकारात्मक हो गयी है की वो अपनी छवि पूरी तरह खोती जा रही है| मेरा खुद का मीडिया कैरियर डेढ़ दशक से ज्यादा का हो गया है और मै इस बात से बिलकुल भी इनकार नहीं करता की मैंने भी ख़बरों को उसी हिसाब से देखा है जिस तरह आज मीडिया जगत देखता है लेकिन इसके बावजूद गलत सही की बात करनी, पहचान करनी, कभी भी गलत नहीं होता| आज के समय में मीडिया का अधिकाँश भाग नेगेटिव यानि की नकारात्मक हो चुका है|

शायद कुछ पाठक या मीडिया के मेरे दोस्त इस ब्लॉग को पढने के बाद कई सवाल उठाएँगे लेकिन सवाल तो मेरे मन में भी है, उनका जवाब कैसे मिलेगा? आज कुछ सवाल रखता हूँ आपके सामने अगर जवाब हो तो जरूर दीजियेगा| (सभी उदाहरण काल्पनिक है) अगर किसी मंत्री के भाई का ड्राईवर कोई अपराध करता है तो यह खबर क्यों बनायीं जाती है की .....मंत्री के भाई के ड्राईवर ने यह कर दिया? सीधे सीधे उस आरोपी का नाम लेकर खबर क्यों नहीं बनती? उस मंत्री का या उसके भाई का क्या कसूर की उसके ड्राईवर ने अपराध किया?

एक और उदाहरण, अगर कोई सेलेब्रिटी अपने निजी जीवन में कुछ कर रहा है तो वो न्यूज़ के दायरे में कैसे आता है? क्या किसी को इस बात का हक नहीं है की वो अपने हिसाब से खाए, पिए, पहने? एक और, जब भी किसी बड़ी कंपनी/रेस्टोरेंट/होटल के खिलाफ कुछ खबर होती है तो कभी एक प्रतिष्ठान का नाम दिया जाता है खबर में और कभी नहीं, ऐसा क्यों? इन सबसे जरुरी बात ये टीवी चैनल की डिबेट का मकसद मुझे कभी समझ नहीं आया, क्या मकसद होता है इसका?(मै खुद एक टीवी जर्नलिस्ट हूँ) एक मुद्दे पर चार पार्टी के लोग, साथ में कुछ ‘बुद्धिजीवी’ इतना चिल्लाते है टीवी पर जैसे आज के बाद उस समस्या का हल पूरी तरह निकल जायेगा, लेकिन उससे क्या होता है?

कुछ उदाहरण और देता हूँ, अगर आज किसी व्यक्ति की मौत होती है तो खबर कैसे बनती है दलित को गोली मारी, नेता ने दलित के घर खाना खाया, कुछ गुंडों ने अल्पसंख्यक को मारा, क्या यह सब खबर का तरीका है? जिसकी मौत हुई है उसको एक इंसान के तौर पर देखा जाना चाहिए या जाति के नाम पर? नेता ने एक किसान के घर या आम आदमी के घर खाना खाया ये नहीं बताया जा सकता? गुंडों के आतंक से क्या एक आम आदमी परेशान नहीं हो सकता? क्यों खबर को सनसनीखेज बनाकर समाज का माहौल ख़राब करते है?

उदाहरण तो हजारों है लेकिन एक आखिरी उदाहरण देता हूँ, क्या रंगों पर किसी का कॉपीराइट है? क्या कपडे, दीवार, घर, बिल्डिंग भले ही वो सरकारी हो या प्राइवेट अगर गेरुआ रंग में है तो सिर्फ एक पार्टी का? अगर हरा है तो दूसरी पार्टी का? लाल है तो तीसरी? क्यों भाई, रंग कब से हिन्दू, मुसलमान होने लगे? क्या फर्क पड़ता है अगर कोई भी पार्टी या नेता अपनी पसंद का रंग इस्तेमाल करते है तो? या फिर मीडिया के पास दिखाने को यही खबर है? अगर ऐसा ही है तो तय कर लो की संतरा कौन खायेगा और अमरुद कौन|  

आज की मीडिया की सबसे बड़ी दिक्कत, वो खुद न्यायपालिका बनती जा रही है| किसी भी खबर या मुद्दे पर खबर दिखाने की जगह पहले ही कसूरवार या बेगुनाह बना देते है| मेरे हिसाब से मीडिया अपने मूल स्वरुप से हट चुकी है| अब समय की मांग हो गयी है की मीडिया का सकारात्मक स्वरुप सामने आये| मीडिया पहले की तरह समाज को सुधारने और देश को मजबूत करने में मदद करे| मै आज भी स्वतंत्र मीडिया का पक्षकार हूँ लेकिन साथ ही जिम्मेदार और सकारात्मक मीडिया का भी|