बिहार विधानसभा के चुनावी नतीजों के बाद महागठबंधन की जीत के
बहुत से समीकरण बताये जा रहे है, कोई इसको पीएम मोदी की नाकामी करार दे रहा है तो कोई
लालू यादव के गणित की तारीफ कर रहा है और कोई नीतीश के सुशासन को पूरे अंक दे रहा
है, लेकिन एक नया समीकरण भी है जिसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा. इस समीकरण को
लेकर न तो मीडिया कोई बात कर रहा है और न ही कोई राजनीतिक दल, यह समीकरण है
त्रिशंकु विधानसभा का.
जी हाँ, बिहार के नतीजे त्रिशंकु विधानसभा के जीते-जागते
उदाहरण के साथ
भारतीय राजनीति के एक अलग पहलू को भी दर्शाते है. चुनाव चाहे लोकसभा
के हों या फिर किसी राज्य के विधानसभा के हमेशा ही दो पक्ष होते है, एक सत्ता पक्ष
और दूसरा विपक्ष, लेकिन बिहार की राजनीति ने इस समीकरण को तार-तार कर दिया. आज़ादी
के बाद से ही केंद्र में दो राजनीतिक दल आमने सामने रहें है, कांग्रेस और भाजपा.
भले ही पहले दोनों दलों के नाम अलग-अलग रहें हो लेकिन मुख्य रूप से यही दोनों दल
पक्ष-विपक्ष में रहें है.
अगर बिहार की बात करें तो पिछले कई सालों से वहां भी भाजपा
के साथ नीतीश एक पक्ष था और लालू यादव वाली राजद दूसरा पक्ष. नीतीश के भाजपा से
अलग हो जाने के बाद जदयू तीसरा पक्ष बनकर उभरा था, लेकिन तब भी राजद और जदयू मुख्य
विरोधी राजनीतिक दल थे. लेकिन सत्ता के लिए बिहार में एक नयी परंपरा शुरू की गयी
और मुख्य विरोधी दल एक साथ आ गए या फिर यूँ कहें की सत्ता पक्ष और विपक्ष एक साथ मिल
गए. यह ठीक उसी तरह था जैसे केंद्र में भाजपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ें.
यह लोकतंत्र नहीं है, लोकतंत्र के लिए जरुरी है की दो अलग
विचारधारा वाले राजनीतिक दल जनता तक अपनी बात पहुंचाए और जनता का आशीर्वाद लेकर
सत्ता संभालें. पक्ष-विपक्ष के मिल जाने से तो लोकतंत्र की अवधारणा ही बदल जाएगी.
जरा सोचिये अगर केंद्र में कांग्रेस-भाजपा मिलकर चुनाव लड़ें तो कहाँ से लोकतंत्र
आएगा? ऐसे तो यूपी में मुख्य विरोधी दल सपा और बसपा भी मिलकर चुनाव लड़ सकतें है.
अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में क्या जरुरत है चुनाव लड़ने की, केंद्र में कांग्रेस-भाजपा
की सरकार, यूपी में सपा-बसपा की, महाराष्ट्र में कांग्रेस-शिवसेना की और इसी तरह
हर राज्य में सरकार बना ली जाए.
आज सब लोग भले ही महागठबंधन की जीत पर तालियाँ बजा रहें है
लेकिन बिहार में त्रिशंकु सरकार है. अब जरा मुख्य विरोधी दलों को अलग करके देखिये राजद-80,
जदयू- 71 और भाजपा- 53, सरकार बनाने के लिए चाहिए 122 इसका मतलब यह त्रिशंकु
विधानसभा है. जदयू सरकार में है और राजद व भाजपा विपक्ष. अब कुछ लोग कह सकते है की
भाजपा और जदयू भी तो एक थे, लेकिन वो एक नहीं थे. पार्टी एक ही थी भाजपा जिससे
टूटकर जदयू बनी थी इसलिए वो दोनों मुख्य रूप से बिहार के पक्ष-विपक्ष नहीं थे.
सत्ता पक्ष और विपक्ष का एक साथ आना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि दोनों
पक्षों की विचारधारा अलग होती है सिर्फ सत्ता के साथ आया जाता है. यहाँ पर सिर्फ
बिहार की बात नहीं है, अगर इस तरह का समीकरण भाजपा भी करती है तो वह लोकतंत्र के
लिए गलत है. शायद कोई भी दिल्ली में भाजपा और आम आदमी पार्टी का गठबंधन नहीं देखना
चाहेगा.
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