Wednesday, November 4, 2015

अपना काम बनता,............जनता

इंसान को भगवान् की सबसे उत्कृष्ट रचना कहा गया है और वो इसलिए क्योंकि इंसान के पास दिमाग होता है. वो सोच सकता है, समझ सकता है, सुख-दुःख बाँट सकता है, लेकिन अब समय बदल चुका है. इंसान किस श्रेणी में जा रहा है वो तो पता नहीं लेकिन आम ज़िन्दगी के कुछ ऐसे पहलू सामने जरूर आते जो सोचने पर मजबूर कर देते है. लेकिन यहाँ पर पूरी दुनिया के इंसानों की बात करना ज्यादती होगा इसलिए बात करते है सिर्फ भारत में रहने वाले इंसानों की. हमारे यहाँ स्वार्थीपन बहुत है बस अपना काम बनना चाहिए और अगर इस चक्कर में दूसरों को परेशानी हो रही है तो होती रहे. चलिये कुछ मामलों पर गौर कर लेते है.

शादी-ब्याह हर घर में होता है और किसी भी व्यक्ति की ज़िन्दगी का यह सबसे खुशी वाला समय होता है. इस पल हो हर व्यक्ति अपने सामर्थ से बढ़कर यादगार बना देता है. उसके बाद हम लोग नाचते-गाते बारात निकालते है और रस्म के साथ दुनिया के सामने अपनी ख़ुशी का इज़हार भी करते है. अगर नहीं देखते है तो बस दूसरों को मिलने वाली परेशानी. आपकी बेतरकीब बारात की वजह से सैकड़ों लोगों को निकलने में परेशानी होती है. किसी को जल्दी घर जाना होता है तो किसी को डॉक्टर के पास. किसी के घर में कोई बीमार व्यक्ति इन्तिज़ार कर रहा होता है तो किसी को जरूरी मीटिंग में पहुंचना होता है. लेकिन सैकड़ों लोगों को परेशानी को सामना करना पड़ता है सिर्फ इसलिए क्योंकि आपको अपनी ख़ुशी मनानी है भले ही दूसरों को परेशानी हो.

दूसरा, भगवान् की अराधना करना बहुत अच्छी बात है और दूसरों को इसमें शामिल करना भी पुण्य का काम है लेकिन दूसरों को परेशानी में डालकर ऐसा करने से कौन सा पुण्य मिलेगा? आपके घर में जागरण का आयोजन किया जाता है लेकिन उसमे बड़े-बड़े हजारों वाट के स्पीकर लगाये जाते है. रात भर तेज़ आवाज़ में आयोजन होता है. ऐसे ही लाउडस्पीकर लगाकर अज़ान किया जाता है. कभी आपने सोचा है की इन सबकी तेज़ आवाज़ से बहुत से घरों में छोटे बच्चे रात भर सो नहीं पाते और रोते रहते है. बहुत से बुजर्ग जिनको दिल की बीमारी होती है उनकी तबियत बिगड़ जाती है. स्कूल-कॉलेज वाले बच्चे अपनी पढाई नहीं कर पाते. आम और स्वस्थ इंसान भी ठीक से नहीं सो पाता और उसका दूसरे दिन का काम प्रभावित होता है.

तीसरा, गर्मियों में शरबत और जाड़ों में चाय वितरण करना अच्छी बात है. किसी ख़ास मौकों पर भंडारे का आयोजन तो पुण्य का काम है. लेकिन इसके लिए अपने घर के आस-पास की सड़क को बंद करके वहाँ आयोजन करना कहाँ तक ठीक है? सैकड़ों लोगों को रास्ता बदलकर लम्बे रास्तों से जाना पड़ता है, जाम की वजह से यातायात ध्वस्त हो जाता है. लोग जाम में फंसकर परेशान होते है. यह सब इसलिए क्योंकि आपको अपना आयोजन करना है. ऐसे सैकड़ों उदाहरण और भी है.

बात सिर्फ समस्या की हो और समाधान ना बताया जाए तो गलत होगा. वैसे तो यहाँ बतायी गयी सभी समस्याओं के लिए कानून बना हुआ है. लेकिन ना तो हम कानून का पालन करते है और ना ही प्रशासन पालन कराता है. फिर भी कम से कम मानवता ने नाते हम थोडा सा ध्यान दे तो दूसरों की परेशानी को कम कर सकते है. बारात को विवाह-स्थल के करीब से उठायें, ज्यादा से ज्यादा 100 मीटर और उसको एक लाइन में व्यवस्थित रखने के लिए 4-5 लोगों की ड्यूटी लगा दें. जागरण या अज़ान के लिए इतना ध्यान रखें की रात के 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर की आवाज़ को बहुत धीमी कर दें. भंडारे जैसे आयोजन नगर निगम की खुली जगह पर अनुमति लेकर करें. ऐसी जगह फ्री में या फिर बिलकुल मामूली किराये पर मिल जाती है.

अगर हम सभी इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें तो यकीन मानिये हमारे आयोजनों में कोई फर्क नहीं पड़ेगा और दूसरों को हमारी वजह से परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा. और हम डंके की चोट पर कह सकेंगे हमारा काम बनता, और खुश रहे जनता.    


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