Sunday, August 5, 2018

....कोई यह ना समझे की भारत धर्मशाला है






ये जग जब भूख से तडपा, हमने दिया निवाला है |
विदेशी सभ्यताओं को भी, निज गोदी में पाला है ||
रही है भावना मेरी, जगत परिवार है अपना |
मगर कोई यह ना समझे की भारत धर्मशाला है ||
                                                      ___आलोक 

आजकल हमारे देश में एक नया मुद्दा चल रहा है जो हमेशा की तरह यह मुद्दा भी वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है और उस मुद्दे का नाम है - एनआरसी यानि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर. अगर मेरे पाठको को इसके बारे में नहीं पता है तो पहले इस मुद्दे को समझ लेते है फिर आगे की बात करेंगे. 

बांग्लादेश से आये घुसपैठियों की बवाल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था की असम में एनआरसी को अपडेट किया जाए. दरअसल यह एक राष्ट्रीय रजिस्टर है जिसमे नाम ना होने पर आपको भारत का नागरिक नहीं माना जायेगा. कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने लोगों से आवेदन मांगें और कुल 3.29 करोड़ लोगों ने आवेदन किये जिसमे से तकरीबन 40 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए और उनका नाम रजिस्टर में नहीं चढ़ा. बस इसके बाद विपक्ष ने इस तरह से मुह खोलना शुरू कर दिया जैसे उनके मुह में बवा..........हो गयी हो. बात यहाँ पर किसी राजनैतिक पार्टी की नहीं है बल्कि देश की है. सवाल यह उठता है की क्या वोट बैंक की राजनीति देश से ऊपर हो गयी है? इस बात को समझने के लिए चलिए पहले कुछ विपक्षी दल के नेताओं के बयान पढ़ लेते जो उन्होंने विभिन्न मीडिया में दिए है.

राहुल गाँधीयह प्रक्रिया सही ढंग से लागू नहीं की गई है, जिससे राज्य में लोगों के बीच असुरक्षा का माहौल है. 
ममता बनर्जीराजनीतिक मंशा से एनआरसी तैयार किया जा रहा है. हम ऐसा होने नहीं देंगे. वे लोगों को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. इस हालात को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. देश में गृह युद्ध, खूनखराबा हो जाएगा.

इस तरह के बयानों को पढ़ कर आपको क्या लगता है? क्या यह देश हित की बात है या फिर देश तोड़ने की? क्या वोट बैंक की राजनीति देश से बढ़ कर देश को तोड़ने की हद तक चली गयी है? यहाँ पर मूद्दे को सुलझाने के कुछ तरीके हो सकते थे जिसमे देश हित की भावना दिखाई पड़ती. विपक्षी दलों को क्या कहना चाहिए इस बारे में बात करने से पहले आईये जान लेते है की केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर क्या कहा है. देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है की किसी भी व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं होगा और जिनके नाम एनआरसी में दर्ज नहीं हो पाए है उनका एक और मौका दिया जायेगा अपने दस्तावेज दाखिल कर नागिकता साबित करने के लिया. अब इस बयान को पढ़ कर क्या लगता है? क्या यह तरीका सही नहीं है? 

अब बात करते है वोट बैंक की राजनीति और देश को "गृहयुद्ध" की धमकी देने वाले नेताओं की. इनको देश हित में यह कहना चाहिए था की "हमारे देश में किसी भी घुसपैठिये के लिए जगह नहीं है. हमारा देश कोई धर्मशाला नहीं है. बस सरकार यह ध्यान रखे की कोई भी व्यक्ति ऐसा न हो जो देश का नागरिक हो लेकिन उसका नाम इस रजिस्टर में आने से छूट जाए". लेकिन ऐसे बयान नहीं आएंगे, क्योंकि उनको घुसपैठियों के वोट चाहिए और इसके लिए कुछ विपक्षी दल देश की आत्मा, सुरक्षा से भी समझौता करने को तैयार दिख रहे है और कम से कम उनके बयान तो यही कहते है. 

ऐसे नेताओ का मै विरोध और बहिष्कार करता हूँ. ऐसे बयान देने वाले नेता चाहे किसी भी पार्टी के हो उनका ना सिर्फ विरोध होना चाहिए बल्कि उनकी सोच की वजह से उनके नागरिक होने पर भी सवाल उठने चाहिए. हमारे लिए, हमारे देश की जनता के लिए सबसे पहले देश है उसके बाद कुछ और. आज ऐसे बयान देने वाले नेता इसलिए ऐसे बयान दे पा रहे है क्योंकि वो भारत जैसे लोकतंत्र में रह कर राजनीति कर रहे है और मुहँ में हमेशा बवा.......रहती है इसीलिए जब मन चाहा तब मुहं खोला और पक से बोल दिया लेकिन इनको यह नहीं भूलना चाहिए की इस देश में अगर कुछ ऐसे लोग हुए है जिन्होंने देश तोडा है तो उससे ज्यादा ऐसे शहीद भी आये है जिन्होंने देश की आत्मा को हमेशा शुद्ध करके अमर किया है.  इसलिए ऐसे नेताओं से कहना चाहूँगा की ना तो देश का माहौल ख़राब है और ना ही गृह युद्ध होगा इसलिए आप लोग परेशान ना हो. आप लोग अपनी चिंता करो क्योंकि यह पब्लिक है यह सब जानती है......


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